DELHI : बिलकिस बानो सामूहिक दुष्कर्म और परिवार के 7 लोगों की हत्या के केस में सुप्रीम कोर्ट ने 8 जनवरी को बड़ा फैसला सुनाया. कोर्ट ने गुजरात सरकार के फैसले को पलट कर दोषियों की रिहाई को रद्द कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर बिलकिस बानो केस के सभी 11 दोषियों को फिक जेल जाना पड़ेगा. दोषियों की रिहाई के बाद बिलकिस बानो ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. न्यायमूर्ति बी.वी नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की खंडपीठ ने 11 दिन की सुनवाई के बाद दोषियों की सजा में छूट को चुनौती देने वाले याचिकाओं पर विगत साल 12 अक्टूबर को अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था।.
बता दें कि 27 फरवरी 2002 को गुजरात के गोधरा रेलवे स्टेशन पर खड़ी साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 बॉगी में आग लगाई गई थी, जिसमें 59 कारसेवकों की जलने से मौत हो गई थी. सभी कारसेवक अयोध्या से लौट रहे थे. इस घटना से पूरे गुजरात में दंगा भड़क गया. 3 मार्च 2002को गुजरात के दाहोद जिला के रंधिकपुर गांव में बिलकिस बानो के साथ दंगाइयों ने सामूहिक दुष्कर्म किया था. उस समय बिलकिस बानो पांच महीने की गर्भवती थी. दंगाइयों ने बिलकिस बानो के परिवार के 14 सदस्यों की हत्या कर दी थी, जिसमें बिलकिस की तीन वर्षीय बेटी भी शामिल थी.
गुजरात सरकार ने 1992 माफी नीति के तहत 15 अगस्त 2022 को सामूहिक दुष्कर्म के 11 दोषियों को रिहा कर दिया था. रिहाई के पीछे गुजरात सरकार ने दलील दिया था कि सभी दोषी 14 साल की सजा काट चुके हैं तथा जेल में इनके व्यवहार और उम्र को देखते हुए इन्हें रिहा किया जा रहा है. उम्रकैद में न्यूनतम 14 साल की सजा होती है, जिसे इन दोषियों ने पूरा कर लिया है.
दोषियों की रिहाई के बाद बिलकिस के साथ-साथ माकपा नेता सुभाषिनी अली, पत्रकार रेवती लाल, लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूपरेखा वर्मा, टीएमसी नेता महुआ मोइत्रा समेत अन्य ने जनहित याचिका दायर कर सजा में छूट को चुनौती दी थी.
कोयलांचल लाइव डेस्क
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