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अमेरिका-इजराइल ने आर्मेनिया के साथ मिलाया हाथ,ट्रंप ब्रिज से ईरान की घेराबंदी की तैयारी! 

7/24/2025 11:31:04 AM IST

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कोयलांचल लाइव डेस्क, Koylachal Live News Team
Edited By - Saba Afrin 
 
ईरान से जारी तनाव के बीच अमेरिका और इजराइल ने आर्मेनिया के साथ मिलकर एक ऐसा कॉरिडोर तैयार करने की योजना पर काम शुरू कर दिया है, जो सीधे-सीधे ईरान की सुरक्षा नीति को चुनौती देता है।  इस कॉरिडोर का नाम है ट्रंप ब्रिज ट्रांसपोर्टेशन कॉरिडोर, जो न सिर्फ अजरबैजान को उसके नखिचवान एनक्लेव से जोड़ेगा, बल्कि ईरान की उत्तरी सीमा पर एक स्थायी अमेरिकी सैन्य बेस के रूप में काम करेगा। 
क्या है ट्रंप ब्रिज कॉरिडोर?
यह एक 42 किलोमीटर लंबा कॉरिडोर है जो आर्मेनिया के Syunik या Zangezur क्षेत्र से गुजरेगा. इस मार्ग के जरिए अजरबैजान अपने मुख्य क्षेत्र और अलग-थलग पड़े नखिचवान एनक्लेव को जोड़ पाएगा, लेकिन असल मुद्दा कनेक्टिविटी से ज्यादा सुरक्षा और नियंत्रण से जुड़ा है। 
इस कॉरिडोर को अमेरिका 99 साल की लीज पर नियंत्रित करेगा. इसका निर्माण और संचालन एक अमेरिकी निजी सैन्य कंपनी (Private Military Company PMC) करेगी. यह कॉरिडोर ईरान की सीमा के बिल्कुल पास होगा — यानी रणनीतिक रूप से बेहद संवेदनशील जगह पर 
ईरान के लिए यह सबसे बड़ा खतरा?
इस कॉरिडोर की वजह से ईरान की उत्तरी सीमा की निगरानी अब अमेरिका के नियंत्रण में होगी.अमेरिकी PMC के 1000 से अधिक सुरक्षाकर्मी वहां तैनात रहेंगे, जिन्हें हथियारों और बल प्रयोग की पूरी छूट होगी. यह कॉरिडोर भविष्य में अमेरिका या इजराइल के किसी भी सीमित सैन्य ऑपरेशन का लॉन्चिंग पैड बन सकता है. ड्रोन हमले, इलेक्ट्रॉनिक सर्विलांस, साइबर निगरानी और सैटेलाइट डेटा कलेक्शन जैसी गतिविधियां वहां से संचालित की जा सकती हैं। इस पूरी व्यवस्था को नॉन-गवर्नमेंटल बताते हुए उसे एक आर्थिकसामरिक परियोजना की तरह पेश किया जा रहा है, जबकि असल में यह एक सॉफ्ट मिलिट्री बेस है। 
ईरान अब चारों ओर से कैसे घिर गया है?
उत्तर में अब ट्रंप ब्रिज से अमेरिकी निगरानी और सैनिक उपस्थिति. वहीं पूर्व में पहले से अमेरिका का अजरबैजान और तुर्की से घनिष्ठता है. हालिया जंग में अजरबैजान पर इजराइल को अपना स्पेस देने का भी आरोप लगा था। दक्षिण में इजराइल की नौसैनिक उपस्थिति और गुप्त ठिकाने जबकि पश्चिम साइड से अफगानिस्तान में अमेरिकी प्रभाव और खुफिया ऑपरेशन नेटवर्क। इसका अर्थ यह है कि ईरान अब चारों दिशाओं से सामरिक प्रेशर में आ चुका है. इससे उसकी विदेश नीति, सीमा सुरक्षा और व्यापारिक गलियारों पर असर पड़ सकता है। 
आर्मेनिया के अमेरिका से हाथ मिलाने का मतलब:
आर्मेनिया पहले रूस के नेतृत्व वाले सैन्य गठबंधन CSTO का सदस्य रहा है और ऐतिहासिक रूप से मॉस्को के प्रभाव में रहा है, लेकिन यह समझौता साफ़ संकेत देता है कि अब आर्मेनिया पश्चिम के पाले में जा चुका है. इसका मतलब है-
1. रूस को सीधी चुनौती 2. ⁠अमेरिका अब कॉकस क्षेत्र में पांव जमा चुका है। 3. ⁠चीन को भी घेरने की तैयारी. यह रूट चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव की कनेक्टिविटी को भी तोड़ सकता है. 4. ⁠ यूरोपीय संघ के लिए बैलेंस बिगड़ा. अमेरिका ने एक बार फिर अकेले मैदान मार लिया। 
अगली जंग में कैसे होगा इसका इस्तेमाल?
ट्रंप ब्रिज एक ऐसा साइलेंट ऑपरेशनल ज़ोन है जिसे युद्ध की स्थिति में तुरंत कमांड सेंटर, ड्रोन बेस, या स्पेशल ऑप्स लॉन्चपॉइंट में बदला जा सकता है. यदि इजराइल और ईरान के बीच तनाव बढ़ता है, तो यह कॉरिडोर स्मार्ट निगरानी और हस्तक्षेप का आधार बनेगा. ईरान की सीमाओं पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाए रखेगा. किसी संभावित हमले में सपोर्टिंग इंफ्रास्ट्रक्चर की भूमिका निभा सकता है। 
ट्रंप ब्रिज सिर्फ एक सड़क नहीं, बल्कि भू-रणनीतिक घेराबंदी की योजना है. ईरान को अब चारों ओर से एक नए सिरे से वॉर जोन में धकेला जा रहा है. आर्मेनिया का झुकाव अमेरिका की ओर मध्य एशिया में नया शक्ति संतुलन रच सकता है. अगली जंग सिर्फ मिसाइलों से नहीं, कॉरिडोरों और कॉन्ट्रैक्ट सैनिकों से भी लड़ी जाएगी। 
 
कोयलांचल लाइव डेस्क