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 सूफी संत हजरत पीर नाफे शाह रहमतुल्लाह अलैह के दो दिवसीय 849 वाँ उर्से मुबारक का आगाज़, 18 जनवरी को की जाएगी चादर पोषी

1/18/2025 11:53:07 AM IST

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कोयलांचल लाइव डेस्क, Koylachal Live News Team
Munger : मुंगेर में सूफी संत हजरत पीर नाफे शाह रहमतुल्लाह अलैह के दो दिवसीय 849 वाँ उर्से मुबारक का कुरानखानी व मिलादशरीफ के साथ हुआ आगाज, 18 जनवरी को शाम 7.30 बजे की जाएगी चादर पोषी। इस मौके पर दूर -दूर से लोग उनकी ज्यारत के लिए उनके मज़ार शरीफ पर आते हैं, सच्चे दिल से मांगी गई हर मुराद पूरी करते है बाबा। मुंगेर जहां एक ओर ऐतिहासिक धरोहरों के लिए जाना जाता है तो वहीं दूसरी ओर सूफी संतों के शहर के नाम से भी जाना जाता है। उन्ही में से एक है हजरत पीर नाफे शाह रहमतुल्लाह अलैह, जिनका सन 1926 मे प्रकाशित मुंगेर गजेटियर के मुताबिक अज़मेर के हज़रत मोईनउद्दीन चिश्ती के शागिर्द फारस के सूफी पीर शाह नाफे (असली नाम अबु अवैद) ज्ञान का आलोक बांटते हुए हिजरी सन 596 (ई0 सन 1176) में मुंगेर पहुंचे और यहीं बस गए और इसी सन में इनकी शहादत हो गई। जिनका आज दो दिवसीय 849 वाँ उर्से मुबारक का कुरानखानी व मिलादशरीफ के साथ आगाज हुआ। 18 जनवरी को शाम 7.30 बजे की जाएगी चादर पोषी।इस मौके पर दूर - दूर से लोग उनकी ज्यारत के लिए उनके मज़ार शरीफ पर आते हैं, ये दरबार बड़ा ही शखी दरबार है यहां सच्चे दिल से मांगी गई हर मुराद पूरी करते है बाबा। यहां लोग रोते हुए आते है और हंसते हुए जाते है। हजरत पीर नाफे शाह रहमतुल्लाह अलैह के मज़ार शरीफ के गद्दीनशीन सैय्यद मो0 शौकत अली ने बताया कि इस दरगाह शरीफ से जुड़ी ऐतिहासिक मान्यता यह है कि बंगाल के सूबेदार दनियाल ने (उस समय मुंगेर बंगाल का हिस्सा था) मुंगेर के किले का जीर्णोद्धार करने की ठानी। इस सिलसिले में एक अजीबोगरीब वाक्या हुआ हर दिन किले के दक्षिणी द्वार के पास जो दीवार दिन के समय उठाई जाती रात में वह गिर जाती, ऐसा कई बार होने के बाद दनियाल को एक रात ख्वाब में किसी सूफी संत ने अपने कब्र पर मज़ार बनाने की सलाह दी। ख्वाब में दनियाल को ये भी बताया गया कि जहाँ तक कस्तूरी की खुशबू आती मिलेगी वहीँ तक किले की दीवार की तामीर करवाना, दूसरे दिन जब दनियाल उस जगह पर पहुंचा तो उसे वहाँ पर कस्तूरी की खुशबू मिली और कस्तूरी की खुशबू जहाँ तक मिली उसके बाद ही किला की दीवार का निमार्ण कार्य करवाया गया। दनियाल के द्वारा 903 हिजरी (ई0 सन 1414) उनके मज़ार का तामीर करवाया गया और तब से लेकर आज तक ये मज़ार हजरत पीर नाफे शाह रहमतुल्लाह अलैह के मज़ार शरीफ के नाम से मशहूर हो गया। इस मज़ार का अरबी में लिखा शिलालेख अभी भी मज़ार शरीफ की दीवारों पर मौजूद है। बाद में मुगल बादशाहों एवं नवाबों के द्वारा शाही ख़ज़ाने से खर्च दिया जाता रहा। इसका फारसी में लिखा हुआ शाही मुहर सहित प्रमाण पत्र अभी भी मज़ार शरीफ में उपलब्ध है।
 
कोयलांचल लाइव के लिए मुंगेर से मो. इम्तियाज़ खान की रिपोर्ट