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ओल चिकी लिपि से संथाली भाषा को गूगल अनुवाद में जोड़ने से अन्तराष्ट्रीय मंच पर इस लिपि की बनी नई पहचान, अब है तैयारी...... 
 

2/11/2025 12:41:08 PM IST

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कोयलांचल लाइव डेस्क, Koylachal Live News Team
Dumka : दिसोम मरांग बुरु संताली अरीचली आर लेगचर अखड़ा और ग्रामीणों ने संथाली भाषा, ओल चिकी लिपि और शिक्षा को लेकर दुमका प्रखंड के हिजला गांव में अखड़ा के सचिव और हिजला गांव के मंझी बाबा (प्रधान) सुनिलाल हांसदा की अध्यक्षता में कुल्ही दुड़ूप (बैठक) किया गया। अखड़ा और ग्रामीणों का कहना है कि संथाली भाषा सिर्फ और सिर्फ ओल चिकी लिपि से ही वैज्ञानिक रूप से सही लिखा जा सकता है, क्योंकि ओल चिकी लिपि के जनक स्वंय पंडित रघुनाथ मुर्मू थे, जो स्वंय संथाल आदिवासी समुदाय से थे, इसलिय इस लिपि से सभी संथाली शब्दों को सटीक और वैज्ञानिक रूप से लिखा जाता है। इसके अलावा जितने भी अन्य लिपि है, उनके जनक संताल आदिवासी नही है, जिस कारण उन लिपियों से संथाली शब्दों को सटीक और वैज्ञानिक रूप से कभी भी नही लिखा जा सकता है, इसलिय ओल चिकी लिपि संथाल आदिवासियों की स्वदेशी लिपि है और अन्य सभी लिपि उधार ली गई लिपियाँ हैं, जो अन्य भाषाओं के लिए विकसित हुई थीं, इसलिए संथाल समुदाय के लिए ओल चिकी लिपि उनकी मूल और सांस्कृतिक रूप से प्रामाणिक और वैज्ञानिक लिपि है। अखड़ा और ग्रामीणों का आगे कहना है कि झारखंड राज्य का गठन मुख्य रूप से आदिवासी समुदायों के सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, शैक्षणिक और आर्थिक विकास को ध्यान में रखते हुए ही किया गया था। झारखंड राज्य बनने के 25 वर्षों के बाद भी आदिवासी समुदायों का संपूर्ण सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, शैक्षणिक और आर्थिक विकास अपेक्षित स्तर तक नहीं हुआ है। संथाल आदिवासी समुदाय झारखण्ड राज्य में आदिवासी जनसंख्या में सबसे अधिक है। उसके बाद भी संथाल समुदाय का संपूर्ण सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, शैक्षणिक और आर्थिक विकास अपेक्षित स्तर तक नहीं हो पाया। उसका मुख्य कारण संथाल आदिवासियों को उनके मातृभाषा संथाली और ओल चिकी लिपि में शिक्षा नही मिलना है।
इनके शैक्षणिक स्तर और जीवन स्तर को सुधारने के लिय यह जरुरी है कि उनके ही मातृभाषा संथाली और उसके स्वंय के स्वदेशी लिपि ओल चिकी लिपि में ही सभी  शिक्षण संस्थानों में पढ़ाया जाय। संथाल समुदाय की सांस्कृतिक पहचान सुरक्षित रहे और नई पीढ़ी अपनी ही भाषा, लिपि और परंपराओं से जुड़ी रहे, उसके लिए जरुरी है कि इनके भाषा संथाली और ओल चिकि लिपि को और बढ़ावा मिले। संथाली भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में वर्ष 2003 में ही शामिल किया गया है, फिर भी इसे वास्तविक रूप से बढ़ावा देने के लिए और प्रयासों की जरूरत है। अखड़ा और ग्रामीणों का कहना है कि संथाली भाषा बंगाल, उड़ीसा, असम, बिहार राज्यों के साथ- साथ बांग्लादेश, नेपाल आदि देशो में भी बोली जाती है।  पश्चिम बंगाल, ओडिशा और असम में सरकार द्वारा संथाली भाषा के लिए केवल ओल चिकी लिपि को ही मान्यता प्राप्त है। इन राज्यों में संथाली भाषा की आधिकारिक लेखन प्रणाली के रूप में ओल चिकी का ही उपयोग किया जाता है और सरकारी दस्तावेज़, शिक्षा तथा प्रशासनिक कार्यों में इसे मान्यता दी गई है। एक लिपि ओल चिकी होने से अब संथाली भाषा को विभिन्य क्षेत्रो में समझना और आसान हो गया है, क्योकि पहले संथाली भाषा उड़िया, बंगाली, असमी, देवनागरी आदि लिपि से लिखा जाता था। ओल चिकि लिपि पूरी दुनिया के संथाल आदिवासियों की एक पहचान हो गई है, जो सभी को एकता के सूत्र में पिरोने का काम कर रही है। ओल चिकी लिपि से संथाली भाषा को गूगल अनुवाद में जोड़ा गया है। इससे संथाली भाषा और ओल चिकी को अन्तराष्ट्रीय मंच पर एक नयी पहचान मिली है। झारखण्ड में ही कुछ लोग सस्ती राजनितिक लाभ के लिय इसका विरोध कर सामाजिक समरसता को बिगाड़ने की कोशिश कर रहे है। जो बर्दाश नही किया जायेगा। अखड़ा और ग्रामीणों ने सर्वसम्मति से मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन, दुमका विधायक बसन्त सोरेन से मांग की है कि संथाल आदिवासी बहुल्य क्षेत्र में शिक्षण के सभी संस्थानों में संथाली भाषा और अन्य विषय उनके मातृभाषा संथाली और ओल चिकी लिपि से ही जल्द पढ़ाया जाय, सरकारी विद्यालयों/ महाविद्यालय/ विश्वविद्यालय में ओल चिकी शिक्षकों की नियुक्ति जल्द की जाय और संथाली भाषा में पाठ्य पुस्तकों का लेखन व प्रकाशन ओल चिकी लिपि में ही किया जाय। अगर सरकार जल्द मांगो पर विचार नही किया जाता है तो, मोड़े मंझी बैठक किया जायेगा। 
 
कोयलांचल लिवइ के लिए दुमका से विजय तिवारी की रिपोर्ट