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राजस्व और पहचान देने के बाद भी पड़ोसी राज्यों से क्यों है पिछड़ा धनबाद ?
11/5/2024 2:30:51 PM IST
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कोयलांचल लाइव डेस्क, Koylachal Live News Team
Dhanbad :
झारखंड विधानसभा चुनाव को लेकर पूरे राज्य में चुनावी सरगर्मियां चरम पर है। राजनीतिक दल के नेता व्यवसाई तथा अनजान अपने-अपने ढंग से इस मामले में अपनी प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं। लेकिन अलग झारखंड राज्य बनने के बाद से ही इस राज्य के निर्माण का उद्देश्य और 24 साल की शासन प्रणाली बहुत कुछ कहती है,जिसे न केवल राज्य की जनता बल्कि पूरे देश को ध्यान से सुनने और सोंचने की जरूरत है। ऐसा इसलिए कि झारखंड की भूमि और इतिहास का राष्ट्र के निर्माण और विकास में अपनी अहम भूमिका निभाई है इतना ही नहीं बल्कि राष्ट्र को विकास की गति देने में इसकी योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। राज्य में धनबाद जिला की भूमिका भी काफी महत्वपूर्ण रही है। धनबाद से पहले इसके झरिया का अस्तित्व था जिसका पूरे इतिहास में जिक्र है और उसी के इतिहास के आधार पर धनबाद की भूमि को कोयले की राजधानी भी माना जाता है। यह और बात है कि इसका मिसाल यहां निवास करने वाले विभिन्न वर्ग के लोग अपने-अपने तरीके से करते हैं। लेकिन मूलतः यह भूमि आदिवासियों का क्षेत्र के हिसाब से स्थापित है। लेकिन बदलते परिवेश में अपने फायदे के लिए यहां की अन्य जातियां आदिवासियों को पीछे कर स्पर्धा में आगे निकलने की कोशिश करती रही है। यह और बात है कि वे अपनी इस कोशिश में अब तक कामयाब नहीं हो पाए हैं। लेकिन इतना जरूर है कि उन्होंने गति को परिवर्तित कर दी है। वर्तमान में देश की अन्य हिस्सों की तरह यहां भी झारखंड विधानसभा चुनाव की तिथियां घोषित है। जिसके लिए तमाम वर्ग अपनी अपनी उपलब्धियां गीनाते हुए स्पर्धा में आगे निकलने की होड़ में लगे हैं। धनबाद की भूमि विभिन्न वजह से अपनी विशेषता के लिए राष्ट्रपति पर अपनी पहचान बनाते रही है। चाहे वह कोयला हो या फिर रेलवे या शैक्षणिक क्षेत्र को अपनी उपलब्धियां और पुराने इतिहास के कारण इसकी भूमिका को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। झारखंड के लिए एक महत्वपूर्ण और चिंताप्रद यह भी है कि यहां आदिवासियों जातियों की आबादी घटती जा रही है। या यूं कहे कि आदिवासियों का कुछ वर्ग तो क्षेत्र से लुप्त तक हो गया है । लेकिन इसकी चिंता अब तक सिर्फ और सिर्फ राजनीतिक नेताओं को है क्योंकि इसमें वह अपना फायदा ढूंढ लेते हैं। राज्य की इस कमी को वह अपने राजनीति में इस्तेमाल कर अपनी गोटी लाल करने में व्यस्त है। लेकिन जब कोई वर्ग क्षेत्र की संस्कृति और विकास के आड़े आए तो उसका विरोध निहायत आवश्यक होता है। लेकिन दुर्भाग्य वर्ष यह विरोध अब तक सामने नहीं आ पाया है। राष्ट्रीय पटल पर अलग राज्य बनाए जाने के मामले में छत्तीसगढ़ उत्तराखंड के साथ-साथ झारखंड का भी स्थान रहा है या यू कहे कि इसमें सबसे महत्वपूर्ण झारखंड ही रही है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। लेकिन राजनीतिक हलके में इसका इस्तेमाल कैसे हो रहा है इसका मौजूदा हालात वर्तमान में यहां घोषित झारखंड की विधानसभा चुनाव से स्पष्ट है। जिनकी पहचान ही इस भूमि से हुई है वही इसे राजनीतिक हथकंडा बनाकर इस्तेमाल कर रहे हैं। ऐसा भी नहीं है कि ऐसा करने से अब तक उन्हें कोई बड़ी लाभ हासिल हुई है। लेकिन आगे की लाभ की ख्याल कर ऐसे लोग अभी भी लगे हुए हैं। अलग झारखंड राज्य बनने के बाद से ही यह राज्य केवल इस्तेमाल की सामग्री बन कर रह गई है।
उमेश तिवारी कोयलांचल लाइव डेस्क
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