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झारखंड विधानसभा में विपक्ष की भूमिका से कब उबरेगी भाजपा ?
 

12/23/2024 2:43:04 PM IST

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कोयलांचल लाइव डेस्क, Koylachal Live News Team
Dhanbad : झारखंड विधानसभा में विपक्ष की भूमिका से कब उबरेगी भाजपा ? यह एक गंभीर सवाल है जिस पर संतुष्ट करने में भाजपा के वरिष्ठ नेता भी सक्षम नहीं। विधानसभा चुनाव के समय मुंगेरीलाल के हसीन सपने दिखने वाली झारखंड की हेमंत सरकार आगे किसान और मजदूरों के हित में क्या कर पाती है अब जल्द ही सामने आ जाएगा। " मइया  सम्मान योजना" के आड़ में चुनाव की बैतरणी 
पार  करने वाली हेमंत सरकार के पास अब कदम कदम पर चुनौती है। अब देखना यह है की मौजूदा समय में सरकार अपनी जनहित की उदारता कितना धरातल पर उतार  पाती है। अपनी वादे  के अनुसार " मइया  सम्मान योजना" में सरकार ने महिलाओं को दी जाने वाली राशि की रकम बढ़कर 1000 रूपये से 2500 रूपये तो कर दिए लेकिन आगे किसानों के हित में क्या करती है यह सरकार को दिखाना पड़ेगा। भाजपा को विपक्ष से भूमिका उबरने  के लिए हेमंत सरकार के खिलाफ तटस्थ विपक्ष की भूमिका निभानी होगी । कहने का तात्पर्य है अब विपक्ष में बैठकर भाजपा को हेमंत सरकार की कमियों  को ढूंढ ढूंढ कर निकालना होगा। अन्यथा भविष्य में भी विपक्ष की भूमिका से वह उबर पाएगी इसमें संदेह है। झारखंड की विधानसभा चुनाव जीतने के लिए भाजपा ने अपनी एड़ी चोटी का पसीना एक कर दिया था लेकिन वही" ढाक के पात" वाली स्थिति रही। चुनाव परिणाम ने  यह बता दिया कि  विधानसभा चुनाव में जातिगत आधार पर हेमंत सरकार को पछाड़ने भाजपा  विफल रही। प्राकृतिक संपदाओं से परिपूर्ण झारखंड में विभिन्न खनिज संपदाओं का दोहन वैध हो या अवैध अपने-अपने ढंग से हो रही है। और धन पशु दोनों हाथ से अकूत संपत्ति लूट रहे हैं। उन  पर हक किसी और का और लाभ कोई और काम रहा है। एक समय था कि हेमंत के पिता शिबू सोरेन ने  महाजनी प्रथा के खिलाफ अपनी बल दिखाकर राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई थी। लेकिन उन्हें के पुत्र की स्थिति यह है की झारखंड में बांग्लादेशी घुसपैठी लगातार दस्तक दे रहे हैं। सत्ता में मदहोश सरकार केवल अपनी साख बचाने में पड़ी है। लेकिन यह सरकार जिस आदिवासियों के बल पर राजनीति कर रही है वही आदिवासी अपने हक और अधिकारों से बेमुख हो रहे हैं। इस बार के चुनाव में सबसे बड़ी परेशानी यह रही की सुदेश महतो की आजसू ने अपेक्षित रिजल्ट नहीं दिया। दूसरी तरफ जयराम महतो ने स्थानियों के नाम पर वोट कटवा की अच्छी भूमिका निभाई जो की भाजपा चुनाव में पछाड़ने मे सबसे सहायक साबित हुई। केंद्रीय मंत्रिमंडल में भी आदिवासियों को जगह देकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भले ही उदारता का परिचय दिया  लेकिन झारखंड की जनता उसे कितना तरजीह दी चुनाव परिणाम ने बता दी । झारखंड मुक्ति मोर्चा के परिवार में फूट डालकर भी भाजपा  कोई बहुत बड़ी उपलब्धि हासिल नहीं कर सकी। चंपाई सोरेन को साथ लेकर भी इस बार अपेक्षित रिजल्ट विधानसभा चुनाव में नहीं आ पाया। ऐन चुनाव के समय पर " मइया  सम्मान योजना" का तीर छोड़कर हेमंत सरकार ने जादुई चिराग के जरिए अंततः भाजपा को पछाड़कर झारखंड की सत्ता एक बार फिर से अपने हाथ ले ली। भाजपा को झारखंड में एक बार फिर सत्तासीन होने के लिए झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थानीय कमी को ढूंढनी होगी। लेकिन फिल्हाल अपने घटक दलों से ही असंतुष्ट भाजपा झारखंड की चुनावी बैतरनी भविष्य में कैसे पार करेगी यह उसे तय करना है। पूरे राष्ट्रीय स्तर पर अपनी तीरंदाजी दिखाने में महारथ हासिल करने वाली भाजपा झारखंड में विफल आखिर क्यों हो रही है ? इस पर पार्टी को गहन चिंतन करनी होगी तभी झारखण्ड में वह विपक्ष की भूमिका से उबर पाएगी। 
 
 
उमेश तिवारी कोयलांचल लाइव डेस्क