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आकर्षक रहा महाराजा कॉलेज आरा में स्नातकोत्तर इतिहास विभाग का महत्वपूर्ण अकादमिक संगोष्ठी

1/6/2025 3:32:09 PM IST

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कोयलांचल लाइव डेस्क, Koylachal Live News Team
Ara  : महाराजा कॉलेज के गोल्डन जुबली हॉल में कॉलेज के शिक्षकों एंव छात्रों की उपस्थिति में स्नातकोत्तर इतिहास विभाग द्वारा एक अकादमिक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस  मुख्य उद्देश्य  महाविद्यालय परिसर स्थित ‘आरा हाउस’ की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि एवं 1857 के आंदोलन में इससे संबंधित घटनाक्रम जिसमें बाबू वीर कुंवर सिंह की भूमिका प्रमुख थी पर प्रकाश डाला गया। आरा हाउस, महाराजा कॉलेज में स्थित 1857 के प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन की जीती जागती प्रतिमूर्ति है। इस संगोष्ठी का मुख्य उद्देश्य नई पीढ़ी को इस महत्वपूर्ण विरासत से परिचित कराने के साथ साथ ब्रिटिश साम्राजवादी सत्ता को सर्वप्रथम सशक्त चुनौती देने की अद्भुत गाथा से अवगत कराना था। कार्यक्रम की औपचारिक शुरुआत इंडियन हिस्ट्री कांग्रेस के 82वें अधिवेशन( वारंगल) के प्रोसीडिंग्स वॉल्यूम को प्रधानाचार्य  द्वारा महाविद्यालय पुस्तकालय हेतु लोकार्पण से शुरू हुआ। इस प्रोसिडिंग वॉल्यूम की विशेषता यह है कि गत वर्ष इंडियन हिस्ट्री कांग्रेस के 82वें अधिवेशन काकतीय यूनिवर्सिटी (वारंगल) में प्रस्तुत स्नातकोत्तर इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष  प्रो. मोहम्मद नियाज हुसैन एवं सहायक प्रोफेसर अरुण कुमार राय द्वारा लिखित शोध पत्र ‘आरा हाउस द लिविंग टेस्टिमनी ऑफ रिवोल्ट ऑफ़ 1857 इन शाहाबाद रीजन ऑफ़ बिहार’ आधुनिक भारत, खंड-3 अंतर्गत क्रमांक-74,पृ 833-839 में छपी है जिसे महाविद्यालय पुस्तकालय हेतु शिक्षकों तथा आम छात्र-छात्राओं के अध्ययन के उद्देश्य से भेंट किया गया। तत्पश्चात विभागाध्यक्ष ने ब्याल कोठी जिसे ‘आरा हाउस’  भी कहा जाता है के बारे में विस्तार से चर्चा की। उन्होंने बतलाया कि जब 7, 8 एवं 40 नंबर की बटालियन विद्रोह का बिगुल फूंकते हुए दानापुर छावनी से आरा की ओर बढ़ने लगे तब शाहाबाद प्रक्षेत्र के बाबू वीर कुंवर सिंह ने कैसे 9 यूरोपीयनों, 6 यूरेशियनों सहित 50 सिखों को इसी कोठी में एक सप्ताह तक छुपने पर मजबूर कर दिया था। इस दौरान बाबू वीर कुंवर सिंह ने अदम्य, वीरता, साहस एवं शौर्य का परिचय देते हुए फतह पाने की हरसंभव कोशिश की लेकिन गोला बारूद की कमी, सिक्ख सिपाहियों द्वारा अंग्रेजों को प्रदत्त सहयोग एंव मेजर विंसेन्ट आयर  की सेना ने उनके मंसूबों पर पानी फेर दिया। इसके ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए वर्तमान में यह बिहार सरकार के कला एवं संस्कृति विभाग द्वारा ‘प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल अवशेष तथा कलानिधि अधिनियम- 1976 के तहत संरक्षित स्मारक घोषित किया है। इसी अवसर पर सहायक प्रोफेसर राजेश कुमार सिंह ने शोध में नवाचार पर जोर देते हुए स्थानीय इतिहास लेखन पर जोर देने की वकालत की। सहायक प्रोफेसर अमितांशु ने इतिहास लेखन में प्राथमिक स्रोत के तौर पर विदेशी रिकॉर्ड के साथ-साथ स्थानीय लेखन के तुलनात्मक अध्ययन के पश्चात इतिहास निर्माण की बात की। डॉ. सुनीता शर्मा ने अतीत से सबक लेते हुए वर्तमान में पारस्परिक सहयोग के जरिए संस्थान को मजबूती प्रदान करने का आह्वान किया । प्रोफेसर चंचल कुमार पांडे ने बतलाया कि हमारे आसपास मौजूद ऐतिहासिक स्थलों का संरक्षण एवं संवर्धन हेतु सरकार सहित आम नागरिकों की संवेदनशीलता जरूरी है ।उन्होंने कहा की शोध का विषय हमारे आसपास ही उपलब्ध है जिसे पहचान कर राष्ट्रीय फलक पर लाना जरूरी है। प्रो संजय कुमार ने शाहाबाद प्रक्षेत्र में कई ऐतिहासिक स्थलों की चर्चा करते हुए उसके संरक्षण एवं संवर्धन पर जोर दिया।  डॉ कमलेश सिंह ने वीर कुंवर सिंह के व्यक्तित्व की चर्चा की। अपने अध्यक्षीय संबोधन में प्रधानाचार्य प्रोआलोक कुमार ने इस तरह के शोध कार्य को करने के लिए शिक्षकों को प्रोत्साहित किया साथ ही यह भरोसा दिलाया कि महाविद्यालय प्रशासन हर स्तर पर शिक्षकों को उत्कृष्ट शोध कार्य करने हेतु हरसंभव सहायता उपलब्ध करने के लिए सदैव तत्पर रहेगा। मौके पर प्रो संजय कुमार, डॉ सुनील यादव, डॉओम प्रकाश आर्या, डॉ प्रज्ञा राय, डॉ. पटेल, डॉ. शैलेश, सुश्री मोना,पिंकी, डॉ  विजेन्द्र सहित तमाम शिक्षक एवं शिक्षिकाएं मौजूद थी। मंच संचालन का कार्य सहायक प्रोफेसर अरुण कुमार राय ने किया जबकि धन्यवाद ज्ञापन डॉक्टर राजेश सिंह ने दिया। समस्त कार्यक्रम को सफल बनाने में बिजेंद्र सिंह, मुकुल,शाहिंदा, अंशु, शुभम, सूरज, मिथिलेश, सुनील, प्रिया, नुसरत सहित कई  छात्र-छात्राओं की सराहनीय भूमिका रही।
 
 
आरा से कोयलांचल लाइव के लिए आशुतोष पांडेय की रिपोर्ट