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आत्मनिर्भरता की नई कहानी लिख रही हैं खरसावां की गम्हरिया स्थित रापचा गाँव की महिलाएँ
 

3/10/2025 7:03:17 PM IST

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कोयलांचल लाइव डेस्क, Koylachal Live News Team
Jamshedpur : सरायकेला-खरसावां जिले के गम्हरिया स्थित रापचा गाँव की महिलाएँ आत्मनिर्भरता की नई कहानी लिख रही हैं। होली पर महिलाओं की अनोखी पहल – पलाश के फूलों से ऑर्गेनिक हर्बल गुलाल,आत्मनिर्भरता की मिसाल की रापचा गाँव है। हालांकि यहां गुलाल 85 रूपये किलो बिक रहा है।"प्रधानमंत्री की आत्मनिर्भर भारत योजना से प्रेरित होकर, ये महिलाएं न सिर्फ अपनी पहचान बना रही हैं, बल्कि अपनी आय भी दोगुनी कर रही हैं। ये महिलाएं स्वदेशी उत्पादों को बढ़ावा देकर आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ा रही हैं। रंगों से सजी ये कहानी आपको भी प्रेरित करेगी।आइये - आज हम आपको लाल जंगल का सैर करते हैं और  एक ऐसी दिलचस्प और प्रेरणादायक कहानी से रूबरू कराने जा रहे हैं, जिसमें महिलाएं अपनी मेहनत और प्राकृतिक संसाधनों का सही उपयोग कर आत्मनिर्भर बन रही हैं।यह कहानी है झारखंड के सरायकेला-खरसावां जिले के गम्हरिया स्थित रापचा गांव की। यहां की महिलाएं अब होली के अवसर पर पलाश के फूलों से आर्गेनिक हर्बल गुलाल बना रही हैं। इस पहल से न केवल वे अपनी आय दोगुनी कर रही हैं, बल्कि पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारी भी निभा रही हैं।  रापचा गांव की महिलाओं  ने यह अनोखी पहल शुरू की है, जहां महिलाएं पलाश के फूलों से प्राकृतिक और स्वास्थ्यवर्धक रंग तैयार कर रही हैं। यह पहल प्रधानमंत्री के "आत्मनिर्भर भारत" अभियान से प्रेरित होकर चल रही है, और अब ये महिलाएं अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत करने में सफल हो रही हैं।पलाश के फूलों का सरायकेला-खरसावां क्षेत्र में खास महत्व है, खासकर होली के समय। पलाश का फूल न केवल अपनी सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इसके प्राकृतिक रंगों का उपयोग होली के पारंपरिक और सुरक्षित तरीके से खेलने में किया जाता है। पलाश को झारखंड का राज्य पुष्प भी घोषित किया गया है और इसे भारत सरकार द्वारा डाक टिकट के रूप में भी सम्मानित किया गया है। इन फूलों का सबसे बड़ा आकर्षण उनका लाल रंग और उनकी मनमोहक खुशबू है, जो होली के मौसम में वातावरण को महकाती है पलाश से बने  रंग  त्वचा के लिए सुरक्षित माने जाते हैं, जबकि केमिकल युक्त रंगों के मुकाबले ये पूरी तरह से पर्यावरण के अनुकूल होते हैं। आयुर्वेद में भी पलाश के फूलों, पत्तों और छाल का कई बीमारियों के इलाज में उपयोग किया जाता है।सरायकेला-खरसावां जिले के जंगलों में इस समय पलाश के पेड़ पूरी तरह से खिल चुके हैं, और उनके लाल रंग से पूरा क्षेत्र रंगीन हो गया है। गांवों में लोग अब भी इन फूलों से प्राकृतिक रंग तैयार करते हैं, और यह परंपरा आज भी जीवित है।ह सिर्फ होली का रंगीन उत्सव नहीं है, बल्कि पलाश के फूलों से बने रंगों का औषधीय गुण भी स्थानीय लोगों के लिए एक वरदान साबित हो रहा है। पलाश से होली खेलना न केवल एक सांस्कृतिक धरोहर है, बल्कि यह प्रकृति से जुड़ने का एक बेहतरीन तरीका भी है। यह सच में एक प्रेरणा है। जहां एक ओर महिलाएं अपनी मेहनत से आत्मनिर्भर बन रही हैं, वहीं वे अपनी पारंपरिक धरोहर और प्राकृतिक संसाधनों की अहमियत को भी बनाए रख रही हैं। 
 
 
जमशेदपुर से कोयलांचल लाइव के लिए मोहम्मद अकबर की रिपोर्ट