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न रहेंगे शोषक न होगी कभी शोषण : जल्द चलेगी डंडे आउट सोर्सिंग कंपनियों पर श्रम विभाग की  
 

4/12/2025 2:16:26 PM IST

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कोयलांचल लाइव डेस्क, Koylachal Live News Team
Dhanbad  : मौजूदा दौर बढ़ती महंगाई से जूझते बेरोजगारी का है। इस दौर में विभिन्न सरकारी व गैर सरकारी प्रतिष्ठानों में विभन्न कार्यों में सेवाएं दे रही आउट सोर्सिंग कंपनियों का है। क्योंकि बदलते दौर में सरकारी कंपनियों के पास से रोजगार पाना साधारण बात नहीं। सरकारी से लेकर गैर सरकारी प्रतिष्ठानों का कार्य भी आउट सोर्सिंग कंपनियों के जरीये हीं हो रही है। और इस दौर में भी कोई कम्पनी आपसे दक्षपूर्ण सेवाएं लेकर समय पर समुचित पारिश्रमिक न दे या अनुचित दे। तो इस दुनिया में इससे बड़ी अन्याय शोषण की बात कुछ और नहीं हो सकती। अपने देश की न्याय व्यवस्था इसे काफी गंभीरता से लेती है। और ऐसे मामले निजी तो छोड़ दें सरकारी एजेंसियों की परिसम्पत्तियों को बिक्री करके श्रमिकों का पारिश्रमिक भुगतान का आदेश तक देती है। यानि इसे एक घोर दंडनीय अपराध कोर्ट भी मानती है। कई दफा तो ऐसा करने वाले एजेंसियों का श्रम रजिस्ट्रेशन विभाग द्वारा रद्द कर दिया जाता है। लेकिन ऐसा करने की स्थिति में यह कहावत बिल्कूल सही बैठती है कि " खेत खाये गदहा, मार खाये जुलाहा " ,ऐसी हरकत करने से किसी की कार्यशैली का उक्त कम्पनी में सेवारत अन्य सेवारत कर्मियों पर पड़ती है। क्यों पारिश्रमिक के साथ साथ उनकी रोजगार भी उनके हाथ से चली जाती है। शायद यही वजह है विभिन्न सेवा में लगी आउट सोर्सिंग कम्पनियो का कमजोरों पर शोषण करती है जिससे आय दिन आर्थिक  अत्याचार दिन प्रतिदिन बढ़ रही है। और एक कहावत है " बिन भय न  होत प्रीत " ऐसे शोषक एजेंसियों पर श्रम विभाग का डंडा जब तक नहीं चलता तब तक उसका सही  परिणाम भी नहीं दिखतें। योजनाओं की आड़ में बड़ी बड़ी डींगें हांकने वाली सरकार भी पांच साल तक जमने के बाद इस मामले में हाथ नहीं लगाती। क्यों कि उनकी राजनीति का भी आर्थिक भार ऐसा करने वाले एजेंसी हीं उठाते हैं। हकीकत यह है श्रमिकों पर जुर्म करने वाले एजेंसियों की श्रम लाइसेंस हीं रद्द हो जानी चाहिए ताकि अगर खेत गदहा खाये तो मार भी खाने का हक भी वही रखता है। ऐसे शोषक खत्म तो शोषण भी आप से आप खत्म हो जाएगा । और  न रहेंगे शोषक और न होगी किसी की शोषण। अर्थात मौजूदा दौर में आउट सोर्सिंग पर श्रम विभाग का समय समय पर डंडा चलना बेहद जरूरी है। थोड़ा थोड़ा मरने से एक साथ मर जाना ज्यादे आसान और लाभप्रद है। देश की कोयला राजधानी धनबाद में बीसीसीएल की आउट सोर्सिंग एजेंसियां इस प्रकार का अत्याचा धड़ल्ले से कर रही है। इसको श्रमिक संघों का योजनाएं तो बहुत बनती है पर धरातल कभी भी नहीं उत्तर पाती। हाल में इंटक की बैठक भी इस मुद्दे पर हुई थी। लेकिन परिणाम फिर भी वहीं के वहीं। इन आउट सोर्सिंग एजेंसियों को लकेर समय समय पर विधि व्यवस्था पर भी असमाजिक गतिविधियां भी सामने आते रहती है। 
 
   
उमेश तिवारी कोयलांचल लाइव डेस्क