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लोकतांत्रिक पहचान वाली बिहार में फिर से नीतिश की वापसी को लेकर चर्चाएं तेज
 
दो से तीन माह और शेष बचे हैं बिहार विधानसभा चुनाव में

8/29/2025 4:32:59 PM IST

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कोयलांचल लाइव डेस्क, Koylachal Live News Team
Dhanbad : राष्ट्रीय पटल पर लोकतांत्रिक पहचान दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला बिहार विधानसभा का चुनाव मे अब चंद माह शेष रह गए हैं। स्थिति यह की राष्ट्रीय पटल पर इन दिनों बिहार विधानसभा चुनाव की चर्चा जोर पकड़ चुकी है उम्मीद की जाती है कि आगामी दो से तीन माह के अंदर बिहार में विधानसभा चुनाव हो जाएंगे। ऐसे में बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर चर्चाएं स्वाभाविक है। स्थिति यह कि इस बार बिहार की पहचान रखने वाले जेपी आंदोलन के एकमात्र नेता नीतिश कुमार की शेहत कुछ कमजोर पड़ चुकी है। इस स्थिति का फायदा विपक्षी इंडिया  गठबंधन उठाने की पूरजोर कोशिश में लगी हुई है। वर्तमान में एनडीए गठबंधन ने सीट्स शेयरिंग का संकेत दे दिया है । चुनाव में इस बार जदयू 102 तथा भाजपा 101 सीट पर चुनाव लड़ेंगे जबकि लोजपा को 20 सीट मिलने जा रहा है 10 सीट हम आवाम मोर्चा को मिलेगा । सीट विभाजन के इस घोषणा से बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर चर्चाएं और भी जोर पकड़ ली है। यह चर्चा भी इन दिनों जोरों पर है की जदयू नेतृत्व को लेकर हो सकता है कि जदयू का भाजपा में मर्ज हो जाय। जिसकी संभावना फिल्हाल दिखती नहीं लेकिन इतना तय है कि एक बार फिर बिहार की सत्ता में एनडीए का वापसी लगभग तय हो चुकी है। यह चर्चा भी जोर पकड़ चुकी है कि इस बार चुनाव में फर्स्ट टाइम वोटर की चलती रहेगी। बिहार के तमाम राजनीतिक दल इस समय इसी समीकरण में लगे हुए हैं कि  जातिगत आधार पर फर्स्ट टाइम वोटर्स को कैसे अपनी ओर खींचा जाय। केंद्रीय चुनाव में मोदी सरकार ने बिहार के नेताओं को लेकर विशेष रूप से ताबड़ तोड़ दाव खेल चुकी हैं। स्ट्राइक रेट के अनुसार भाजपा का रेट बिहार में पहले से हीं बेहतर रहा है तथा अब तक भी बेहतर की स्थिति हीं है। बिहार के राजनीतिक परिपेक्ष्य में इस दृश्य को लेकर इन दोनों चर्चाओं का बाजार गर्म है की जदयू के कार्यालय में नरेंद्र मोदी का पोस्टर और भाजपा कार्यालय में नीतीश कुमार का पोस्टर विधानसभा चुनाव को लेकर बहुत कुछ संकेत दे रही है। स्थिति यह है कि  बिहार के एनडीए गठबंधन में एक भी शख्स ऐसा नहीं है जो नेतृत्व मे नीतीश  कुमार को काट दे सके। लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का स्वास्थ्य संबंधी कमजोरी की स्थिति में पहले से चुनाव को लेकर विपक्षी दल मुंह पिजाये बैठे हैं। और मुंगेरीलाल के हसीन सपने की स्थिति में यह सपना देख रहे हैं कि आम पका है गिरेगा तो खाऊंगा । सवाल यह है कि आम पका है या नहीं यह तो चुनाव परिणाम के आधार पर ही सामने आएगा। वैसे बिहार में जेपी आंदोलन के एक प्रणेता लालू यादव भी हैं जिनकी राजनीति भी फिल्हाल नजरअंदाज नहीं की जा सकती। तेजस्वी यादव को हालांकि लालू जी ने दल से अलग कर दिया है लेकिन विधानसभा चुनाव में वह भी एक महत्वपूर्ण फैक्टर बनेगा तथा चुनाव परिणाम में उनकी इस कार्यशैली की भी महत्वपूर्ण भूमिका होगी। हालांकि मौजूदा दौर में हकीकत यह है कि बिहार की आवाम ब लालू  यादव के साथ चलने के लिए तैयार नहीं दिखती ।लेकिन पिछले चुनाव का परिणाम को देख तो राजद को भी बिल्कुल नजरअंदाज भी नहीं किया जा सकता। इसलिए स्थिति फिर भी उनकी कमजोरी की उतनी नहीं है और बिहार के चुनाव परिणाम में उसका  भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा होगा जिसे नकारा नहीं जा सकता। यह भी चर्चा है कि अगर चुनाव से पहले नीतीश कुमार ने पलटू बनकर कोई दूसरी चाल चली तो उसका नुकसान जदयू को ही होगी। वैसे केंद्रीय सरकार बनाने में पी एम मोदी ने उनका भरपूर साथ दिया है और अब साथ देने की उनकी बारी है।  एक बात और है की केंद्रीय चुनाव में भाजपा ने बिहार को जो तब्बजो दी है उसका रिजल्ट इस बार की बिहार विधान सभा चुनाव में उसकी भी एक महत्वपूर्ण भूमिका होगी । ले देकर स्थिति यह है कि एक बार फिर से बिहार में जदयू की नीतिश कुमार सरकार की वापसी लगभग तय मानी जा रही है।
 
 
उमेश तिवारी कोयलांचल लाइव डेस्क