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" मांगो उसी से जो दे दे खुशी से" सीट बंटवारे पर बिहार के दोनों गठबंधन में अब तक असमंजस
9/26/2025 4:30:37 PM IST
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कोयलांचल लाइव डेस्क, Koylachal Live News Team
Dhanbad :
बिहार विधानसभा चुनाव की तिथि घोषित होने से पहले ही राजनीतिक दलों में चहलकदमी उफान पर है। गठबंधन मर्यादा में सीट बंटवारे पर अब तक खुलासा नहीं हो पाया है। ऐसे में यह अनुमान लगाना मुश्किल है की चुनाव तिथि घोषित होने तक एनडीए तथा इंडिया गठबंधन की पुरानी स्थिति बरकरार रह पाएगी। एनडीए गठबंधन में अनुमान के आधार पर सीट मैट्रिक्स तय हो चुकी है लेकिन इंडिया गठबंधन में अब तक परिदृश्य साफ नहीं है। एनडीए के साथ मुख्य घटक दलों में जदयू के साथ लोजपा (राम विलास) जीतन राम मांझी की संगठन तथा उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी शामिल है ।लेकिन यहां महत्वपूर्ण बात यह है की इन छोटे-छोटे जातिगत दलों का आस्तित्व भी राष्ट्रीय पार्टी के साथ जुड़कर रहने में ही है क्योंकि एकला चलो की स्थिति में आस्तित्व पर भी खतरा है। ऐसे में सीट मैट्रिक्स घोषित होने से पहले इन दलों की भविष्य की चिंता भी गठबंधन की सीट मैट्रिक्स तैयार करने वाले के जेहन में होने चाहिए। तभी गठबंधन में एनडीए बच पाएगी और दोबारा बिहार में एक बार फिर से एनडीए सरकार की वापसी हो सकेगी। यहां एक बात बताना जरूरी होगा कि एनडीए गठबंधन में एकमात्र लोजपा (राम विलास) की पार्टी ही ऐसी है जिसे जातिगत आधार के अलावे स्वर्ण जाति की भी वोट मिलती रही है और उसे पर भी उनकी पकड़ हमेशा बनी रही है ।यह सब उनके पिता केंद्रीय हस्ती स्व रामविलास पासवान के समय से ही चली आ रही है जो अब तक बरकरार है।इस आधार पर अगर इतिहास टटोलते हैं तो एनडीए के घटक दलों ने हीं पिछले चुनाव में एक दूसरे को नुकसान पहुंचाने का कार्य किया है लेकिन केंद्रीय नेतृत्व में दुश्मन भी गले मिलकर गठबंधन का साथ देने लगते हैं यही गठबंधन की राजनीति है। और इसी प्रकार की राजनीति में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पिछले 20 साल तक बिहार में अपनी शासन को बरकरार रखा। लेकिन सब दिन होत एक समान नीतीश कुमार की स्थिति भी उम्र के हिसाब से अब वह नहीं रही तथा पार्टी के अन्य नेता उनके जगह पर नेतृत्व संभाल कर अपनी राजनीतिक रोटी लाल करने की जुगत देख रहे हैं। हालांकि वह अपने इस मानसा में कितना और कब तक कारगर होंगे यह अभी तक समय की बवंडर में फंसा हुआ है। फिर भी इतना तय है की प्रतिद्वंद्वी इंडिया गठबंधन की मौजूदा स्थिति को देखकर यह सहज अनुमान लग रहा है कि एक बार बिहार में फिर से एनडीए की वापसी लगभग तय है ।वैसे राजनीति में किसका सितारा आसमान पर और किसका पाताल में घुस जाता है इसे प्रत्यक्ष रूप से बता पाना संभव नहीं होता । सीट बटवारा के मामले में एनडीए के घटक दलों को भी यह ख्याल रखना होगा कि "मांगो उसी से जो दे दे खुशी से "अन्यथा निराशा और नुकसान का इतिहास पुराना रहा है। राजनीति में चंडी माने जाने वाली इंदिरा गांधी भी एक समय था कि चुनाव हार गई थी। जिसके बाद उन्हें अपनी वजूद बचाए रखने के लिए देश में इमरजेंसी तक लगाना पड़ा था जिससे पार्टी और जनहित दोनों को ही नुकसान हुआ। हालांकि मौजूदा दौर में ना हीं इंदिरा है ना ही जयप्रकाश नारायण जैसे लोकनायक जिसके नाम पर पूरे देश में तूती बोलती थी। ले देकर यह तय है कि बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर तिथि घोषणा से पहले ही दोनों मुख्य गठबंधन एनडीए और इंडिया आमने-सामने है तथा कमर कस के चुनावी समर में उतरने को तैयार है। बिहार की जनता को लंबे समय के बाद एक बार फिर से अपने राज्य की आस्तित्व के संबंध में निर्णय लेने की दौर आ गई है। लेकिन चुनावी समर में परिणाम की ऊंट किस करवट बैठेगा यह अब तक काल के गाल में है।
उमेश तिवारी कोयलांचल लाइव डेस्क
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