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अक्सर पार्टी-फंक्शन के लिए महिलाएं सजती हैं, ये अधूरा सच है, बंद कमरे में पति की मार छिपाने के लिए भी उन्हें मेकअप करना पड़ता है,

05-03-2023

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कोयलांचल लाइव डेस्क, Koylachal Live News Team
8 मार्च को इंटरनेशनल वुमेंस-डे है। यह संयोग ही था कि दो दिन पहले एक नामी और कामयाब महिला एंटरप्रेन्योर को महिला दिवस के बारे में अपने विचार व्‍यक्‍त करते सुना। सवाल के जवाब में वो सवाल पूछ रही थीं क्‍या हम इंटरनेशनल वुमेंस-डे मनाते हैं। क्‍या हम पुरुष होने को सेलिब्रेट करते हैं, उसका उत्‍सव मनाते हैं। अगर पुरुषों के लिए ऐसा कोई दिन नहीं, तो फिर महिलाओं के लिए क्‍यों। इंटरनेशनल वुमेंस-डे मनाने का मतलब है कि हम महिलाओं को कमजोर और पिछड़ा मानते हैं। उनकी इस बात पर काफी तालियां बजीं और मजे की बात ये थी कि ताली बजाने वालों में ज्‍यादातर पुरुष ही थे। महिलाएं थोड़ी कनफ्यूज, थोड़ी सकपकाई ये समझ नहीं पा रही थीं कि उन्‍हें किस तरफ होना चाहिए। उन पुरुषों की तरफ, जो ये मान रहे हैं कि महिलाओं को सारे अधिकार और बराबरी मिल चुकी है या उस तथ्‍य की तरफ जो उनकी जिंदगी का सच है। पीछे और अकेले छूट जाने के डर से, कमजोर माने-जाने के डर से, समूह में शामिल न किए जाने के डर से आखिर वो सब भी तालियां बजाने लगीं, लेकिन ताली बजाते हुए वो सोच रही थीं कि ये कब और कैसे हुआ कि वो सैकड़ों सालों के पिछड़ेपन के चंगुल से छूटकर मर्दों के बराबर खड़ी कर दी गईं। क्‍योंकि सच तो ये है कि उनमें से 80 फीसदी महिलाओं को अपने पिता की संपत्ति में कोई हिस्‍सा नहीं मिला। सारी जमीन-जायदाद, मकान, बैंक बैलेंस और फैमिली बिजनेस का उत्‍तराधिकारी उनका भाई ही रहा।
 
 
 
कोयलांचल लाइव डेस्क