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सितंबर माह के आगमन पर काश के फूल का खिलना नवरात्र मां दुर्गा के आने का संकेत देता है
9/9/2025 3:27:49 PM IST
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कोयलांचल लाइव डेस्क, Koylachal Live News Team
Edit by umesh tiwary .
Jamshedpur :
सितंबर माह के आगमन के साथ ही जब वर्षा की रफ्तार धीमी पड़ती है और वातावरण में ताजगी घुलने लगती है तब प्रकृति का एक अद्भुत नजारा सामने आता है। नदियों के किनारे, खेतों और गांव के रास्तों पर सफेद चादर बिछा देता है काश का फूल। इसकी खिली हुई सफेदी मानो मौसम बदलने और त्योहारों के करीब आने का संकेत देती है। ग्रामीण मान्यताओं के अनुसार काश के फूलों का खिलना मां दुर्गा के आगमन का प्रतीक माना जाता है। नवरात्रि के आसपास यह फूल पूरे शबाब पर होता है और लोग इसे देवी का आशीर्वाद मानते हैं। बुजुर्ग और महिलाएं इस दृश्य को देखकर पूजा- अर्चना शुरू कर देती हैं। यह परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी आज भी जीवित है। काश का फूल मुख्यतः सितंबर और अक्टूबर में खिलता है। इसकी सफेदी किसानों को भी संकेत देती है कि वर्षा का मौसम थम रहा है और खेती- बाड़ी की तैयारी का समय है। पारिस्थितिकी की दृष्टि से यह फूल पर्यावरण के संतुलन और जैव विविधता का भी प्रतीक है। स्थानीय लोककथाओं के अनुसार काश के फूल मां दुर्गा के आगमन की खुशबू लेकर आते हैं। इसकी खिलखिलाहट ग्रामीण इलाकों में आध्यात्मिक अनुभव जैसी मानी जाती है। रात में खिलकर सुबह मुरझाने वाला यह फूल लोगों के लिए प्रकृति का अद्भुत उपहार है। काश का फूल केवल प्राकृतिक सौंदर्य का नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और आध्यात्मिक चेतना का भी प्रतीक बन चुका है। इसकी खिली सफेदी हर दिल में यह संदेश जगाती है कि अब देवी मां की कृपा का समय आ गया है और नया उत्सव दस्तक दे रहा है। इसका जिक्र रामचरित मानस के किष्किंधा कांड में भी मिलता है। जिसमें कवि तुलसीदास शरद ऋतु के आगमन का वर्णन करते हैं। " बर्षा बिगत शरद रितु आई, लछमन देखहु परम सुहाई. फूलें कास सकल महि छाई, जनु बरषाँ कृत प्रगट बुढ़ा। ". इस चौपाई का अर्थ है कि वर्षा ऋतु समाप्त हो गई है और सुंदर शरद ऋतु आ गई है, जिसके कारण कास के फूलों से पूरी धरती छा गई है, मानो वर्षा ने सफेद बालों के रूप में अपनी बुढ़ापा प्रकट किया हो।
जमशेदपुर से कोयलांचल लाइव के लिए मोहम्मद अकबर की रिपोर्ट
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